आज हमारे देश भारत में प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालयों की संख्या लाखों में है फिर भी शिक्षा की स्थिति क्या है? आज 8-14 वर्ष के आयु वर्ग मंे लगभग दस करोड़ बच्चे शिक्षा से वंचित हैं क्योंकि उनके पास पढ़ने के साधन नहीं, वे अपना पेट भरने के लिये मजदूरी करते हैं। यही नहीं, यद्यपि देश की लगभग 95 प्रतिशत आबादी के पास एक किलोमीटर के क्षेत्र मंे प्राथमिक स्कूल हैं। किन्तु फिर भी देश में 38 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक लोग निरक्षर हैं। इसका कारण जहां एक ओर गरीबी और निद्र्दनता है, वहां दूसरी ओर पब्लिक स्कूलों द्वारा शिक्षा का निजीकरण/व्यापारीकरण किया जा रहा है। जिनके पास पैसा है वहीं इन स्कूलों में प्रवेश पा सकते हैं। फिर इन पब्लिक स्कूलों के अध्यापक दिन राज ट्यूशनों में लगे रहते हैं। पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक ट्यूशनें चलती हैं। स्कूल या कक्षा mea पढ़ने की आवश्यकता या फुर्सत ही नहीं सरकार इनका कुछ न हीं कर सकती क्योंकि ये निजी स्कूल हैं।
सरकारी स्कूलों मंे पढ़ाई की स्थिति अच्छी नहीं। यदि वहां पढ़ाई अच्छी होती है तो लोग पब्लिक स्कूलों की ओर क्यांे दौड़ते? वहां के परीक्षा परिणाम भी कुछ अच्छे नहीं होते। फिर सरकारी स्कूलों मंे अध्यापक बहुत सी जगह अनुपस्थित भी रहते हैं या फिर स्कूलों में होते हुए भी पढ़ाने मंे रुचि नहीं लेते। प्रत्येक प्रान्त और जिले में ऐसे अध्यापक मिल जायेंगे। कहीं-कहीं स्कूलों मंे तो दौरे के दौरान एक भी शिक्षक स्कूल में नहीं पाया गया। इतना ही नहीं कहीं-कहीं तो चपरासियों द्वारा भी शिक्षण कार्य चलाया जा रहा है। कई शिक्षक ट्यूशन में व्यस्त होने के कारण कक्षाएं नहीं लेते जबकि कुछ शिक्षक साइड बिजनेस में जुटे रहते हैं। कुछ अन्य शिक्षक बड़ी कक्षाओं के बच्चों को छोटी कक्षाओं को पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंप देते हैं। यह शिक्षा और शिक्षकों के मुंह पर करारा तमाचा नहीं तो और क्या है?
उच्च शिक्षा की ओर ध्यान दें तो कालेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या मंे निरन्तर वृद्धि हो रही है लेकिन इनमें शिक्षण या पढ़ाई को देखो तो पता चलेगा कि विश्वविद्यालयों मंे तो अध्यापन का कार्य बहुत कम समय चलता है, कई बार तो दिन मंे एक घंटे का भी समय नहीं होता क्योंकि वहां शोद्द विस्तार आदि कार्यक्रम भी चलते रहते हैं। जहां तक कालेजों में शिक्षण का सम्बन्द्द है, वहां वर्ष मंे छह मास तो अवकाश रहता है। इसमें व्यवस्था का दोष, शिक्षकों का दोष नहीं। किन्तु बाकी छह महीनों मंे शिक्षक कितना पढ़ा पाते हैं, यह देखने की बात है। यूजीसी तथा राज्य सरकारों द्वारा नये वेतनमान दिये जाने पर भी कालेज शिक्षकों द्वारा ट्यूशन जारी है। बड़े-बड़े कोचिंग केन्द्र एवं ऐकेडमियां उन्हीं के सहारे भरमार रहती है। ऐसे में कक्षाओं में पढ़ाने वाले शिक्षक बहुत कम रह गये हैं। एक उदाहरण हरियाणा का है। हरियाणा सरकार ने कालेजों में ट्यूशनों पर प्रतिबन्द्द लगा दिया था। ट्यूशनों तथा कालेजों में पढ़ाई को लेकर एक अभियान छेड़ रखा है। दोषी अध्यापकों के विरुद्ध सरकार सख्त कार्यवाही कर रही हैं इसके लिये शिक्षक स्वयं दोषी है। अन्य प्रदेशों/प्रान्तों के शिक्षकों को इससे सबक लेना चाहिए।
शिक्षक राष्ट्र का निर्माता है। नर्सरी अथवा पहली कक्षा से लेकर वह बी.ए./एम.ए. तक देश के लाखों, करोड़ों विद्यार्थियों को शिक्षा देता है। स्कूलों, कालेजों तथा विश्वविद्यालयों की शोभा उसी के कारण है। विज्ञान, वाणिज्य, कला प्रबन्द्दन, चिकित्सा, इंजीनियरी आदि कोई ऐसा विषय नहीं जो वह नहीं पढ़ाता है। पै्रस और कम्प्यूटर के युग mea लाखों की संख्या मंे पुस्तकें प्रतिवर्ष प्रकाशित होती हैं। किसी भी विषय पर पुस्तकें बाजार मंे प्राप्त की जा सकती हैं। यहां तक कि बड़े नगरों मंे फुटपाथों पर भी विज्ञान, वाणिज्य आदि सम्बन्धी अच्छी-अच्छी पुस्तकें मिल जायेंगी किन्तु फिर भी शिक्षक का महत्व बना हुआ है। बिना शिक्षक के स्कूल/विद्यालय, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय सब सूने हैं; अर्थविहीन हैं।
केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों को शिक्षकों की समस्याओं और कठिनाइयों को दूर करने की ओर ध्यान देना चाहिए। बिहार जैसे कई प्रान्तों मंे तो शिक्षकों को समय पर वेतन ही नहंी मिलता। फिर कई बार केन्द्र सरकार भी शिक्षकों से किये गये वायदों को लागू नहंी करती। अतः शिक्षक को जागरूक होना होगा। उसे समाज तथा राष्ट्र की ओर ध्यान देना होगा। शिक्षक चाहे स्कूल का हो, अथवा कालेज का या विश्वविद्यालय का, उसे अपने अध्यापन एवं शिक्षण के प्रति ईमानदार होना होगा। आज देश भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख है। राजनीति में अपराद्दी लोगों का बोलबाला है। ऐसे में शिक्षक ही देश को राह दिखा सकते हैं। आज देश को ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है जो शिक्षा अथवा शिक्षण के प्रति समर्पित हों।
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